लखनऊ। फाइलेरिया यानि हाथी पांव बीमारी का पता तब चलता है जब लक्षण उभरते हैं। यह बीमारी 8 से 10 साल बाद हाथीपांव एवं हाइड्रोसील के रूप में सामने आती है। प्रदेश में करीब 26 प्रतिशत स्वस्थ लोग बैगर किसी लक्षण के माइक्रो फाइलेरिया से संक्रमित पाये गये।
अपर निदेशक मलेरिया एवं वेक्टर बोर्न डिजीज डाक्टर वीपी सिंह ने बताया कि फाइलेरिया मच्छर के काटने से होने वाला एक संक्रामक रोग है जिसे समान्यत: हाथी पांव के नाम से जाना जाता है।
पेशाब में सफेद रंग के द्रव का जाना जिसे कईलुरीया भी कहते हैं फाइलेरिया का ही एक लक्षण हैं। इसके अलावा पैरों व हाथों में सूजन (हाथी पांव) पुरुषों में हाइड्रोसील (अंडकोश में सूजन) और महिलाओं में ब्रेस्ट में सूजन भी इसी का लक्षण है। फाइलेरिया बच्चों में काफी होता है जो उनके लसिका तंत्र (लिंफेटिक सिस्टम) को पहुंचता है।
इससे बच्चों के कार्य करने की क्षमता कम हो जाती है। इसी कारण हर साल फाइलेरिया से बचाव की एक खुराक खिलाकर इस संक्रमण से बच सकते हैं। राष्ट्रीय फाइलेरिया उन्मूलन कार्यक्रम के तहत फरवरी के पहले सप्ताह में ही स्वास्थ्य केन्द्रों को दवाइयां उपलब्ध करा दी जाती है। उन्होंने बताया कि अभियान के दौरान स्वास्थ्य कार्यकर्ता घर-घर जाकर दवा खिलाते हैं। किसी भी स्थिति में घरों पर दवा का वितरण नहीं किया जाता, साथ ही लोगों को जागरूक किया जा रहा है।
अभियान में स्वास्थ्य विभाग के साथ पंचायती राज, शिक्षा, समाज कल्याण (आईसीडीएस) नगर विकास एवं सूचना विभाग सहयोग देंगे। उन्होंने बताया कि रविवार और बुधवार को छोड़कर बाकी दिन यह अभियान चलेगा। इसके तहत एमडीए जिलों में डाईइथाइलकार्बमजीन(डीईसी) एवं अल्बेन्डाजोल की दवा तथा आईडीए जिले यानि वाराणसी में डीईसी तथा अल्बेंडाजोल के साथ आइवर्मेक्टिन की दवा दी जायेगी।
अभियान में 2 वर्ष से कम आयु के बच्चों, गर्भवती महिलाओं व गंभीर रोग से ग्रसित व्यक्तियों को दवा नहीं दी जाएगी। जिन व्यक्तियों में फाइलेरिया के कीटाणु रहते हैं उन्हें दवा के सेवन के बाद चक्कर आना, जी मिचलाना, उल्टी आना व हल्का बुखार आना आदि समस्याएं हो सकती हैं। अगर 5 वर्ष तक इस दवा का सेवन कर लिया जाए जीवन भर फाइलेरिया का खतरा नहीं रहता।