बाजरा आधारित उत्पादों पर 2026-27 तक 800 करोड़ खर्च करेगा केंद्र
लखनऊ। बाजरे की खेती करने वाले किसानों की अब बल्ले-बल्ले होने वाली है। केंद्रीय खाद्य एवं प्रसंस्करण मंत्रालय 2026 से 2027 के दौरान बाजरे पर आधारित उत्पादों के प्रोत्साहन पर 800 करोड़ रुपये खर्च करेगा। ये उत्पाद रेडी टू ईट और रेडी टू सर्व दोनों रूपों में होंगे।
विदेशी मुद्रा भी लाएगा अपना बाजरा
बाजरा सहित अन्य मोटे अनाजों के निर्यात पर भी सरकार का फोकस है। खाद्यान्न उत्पाद निर्यात विकास प्राधिकरण (एपीडा) ने उन 30 देशों को चिन्हित किया है, जिनमें निर्यात की अच्छी संभावनाएं हैं। उल्लेखनीय है कि देश के उत्पादन का करीब 20 फीसदी बाजरा उत्तर प्रदेश में होता है। प्रति हेक्टेयर प्रति किग्रा उत्पादन देश के औसत से अधिक होने के कारण इसकी संभावनाएं बढ़ जाती हैं। लिहाजा प्रसंस्करण के जरिये इसके निर्यात और इससे मिलने वाली विदेशी मुद्रा की संभावनाएं बढ़ जाती हैं।
गेहूं, धान, गन्ने के बाद प्रदेश की चौथी फसल है बाजरा
गेहूं, धान और गन्ने के बाद बाजरा उत्तर प्रदेश की चौथी प्रमुख फसल है। खाद्यान्न एवं चारे के रूप में प्रयुक्त होने के नाते यह बहुपयोगी भी है। पोषक तत्वों के लिहाज से इसकी अन्य किसी अनाज से तुलना ही नहीं है, इसलिए इसे “चमत्कारिक अनाज”, “न्यूट्रिया मिलेट्स”, “न्यूट्रिया सीरियल्स” भी कहा जाता है।
हर तरह की भूमि में ले सकते हैं फसल
इसकी खेती हर तरह की भूमि में संभव है। न्यूनतम पानी की जरूरत, 50 डिग्री सेल्सियस तापमान पर भी परागण, मात्र 60 महीने में तैयार होना और लंबे समय तक भंडारण योग्य होना इसकी अन्य खूबियां हैं। चूंकि इसके दाने छोटे एवं कठोर होते हैं, ऐसे में उचित भंडारण से यह दो साल या इससे अधिक समय तक सुरक्षित रह सकता है। इसकी खेती में उर्वरक बहुत कम मात्रा में लगता है। साथ ही भंडारण में भी किसी रसायन की जरूरत नहीं पड़ती। लिहाजा यह लगभग बिना लागत वाली खेती है।
पोषक तत्वों का खजाना है बाजरा
बाजरा पोषक तत्वों का खजाना है। खेतीबाड़ी और मौसम के प्रति सटीक भविष्यवाणी करने वाले कवि घाघ भी बाजरे की खूबियों के मुरीद थे। अपने दोहे में उन्होंने कहा है, “उठ के बजरा या हँसि बोले। खाये बूढ़ा जुवा हो जाय”। बाजरे में गेहूं और चावल की तुलना में 3 से 5 गुना पोषक तत्व होते हैं।
इसमें ज्यादा खनिज, विटामिन, खाने के लिए रेशे और अन्य पोषक तत्व मिलते हैं। लसलसापन नहीं होता। इससे अम्ल नहीं बन पाता। लिहाजा सुपाच्य होता है। इसमें उपलब्ध ग्लूकोज धीरे-धीरे निकलता है।
लिहाजा यह मधुमेह (डायबिटीज) पीड़ितों के लिए भी मुफीद है। बाजरे में लोहा, कैल्शियम, जस्ता, मैग्निशियम और पोटाशियम जैसे तत्व भरपूर मात्रा मे होते हैं। साथ ही काफी मात्रा में जरूरी फाइबर (रेशा) मिलता है। इसमें कैरोटिन, नियासिन, विटामिन बी6 और फोलिक एसिड आदि विटामिन मिलते हैं। इसमें उपलब्ध लेसीथीन शरीर के स्नायुतंत्र को मजबूत बनाता है।
यही नहीं बाजरे में पोलिफेनोल्स, टेनिल्स, फाइटोस्टेरोल्स तथा एंटीऑक्सिडैन्टस प्रचुर मात्रा में मिलते हैं। यही वजह है कि सरकार ने इसे न्यूट्री सीरियल्स घटक की फसलों में शामिल किया है। अपने पोषण संबंधित इन खूबियों की वजह से बाजरा कुपोषण के खिलाफ जंग में एक प्रभावी हथियार साबित हो सकता है।
बिना लागत की खेती
बाजरे की खेती में उर्वरकों की जरूरत नहीं पड़ती। इसकी फसल में कीड़े-मकोड़े नहीं लगते। अधिकांश बाजरे की किस्में भंडारण में आसान हैं। साथ ही इसके भंडारण के लिए कीटनाशकों की जरूरत नहीं पड़ती। इसी तरह नाम मात्र का पानी लगने से सिंचाई में लगने वाले श्रम एवं संसाधन की भी बचत होती है।
यूएनओ ने 2023 को घोषित किया ईयर ऑफ मिलेट
भारत के ही प्रस्ताव पर 2023 को अंतरराष्ट्रीय मिलेट वर्ष के रूप में मनाया जा रहा है। उल्लेखनीय है कि बढ़ते शहरीकरण एवं औद्योगिकीकरण, बढ़ती आबादी की आवासीय जरूरतों, सड़क, बांध, एयरपोर्ट आदि के लिए जमीन की जरूरत पड़नी ही है। लिहाजा जमीन का रकबा लगातार घटना है। ऊपर से मौसम की अप्रत्याशिता। आने वाले समय में खाद्यान्न एवं पोषण सुरक्षा के साथ क्लाइमेट चेंज के प्रति संवेदनशील धान एवं गेहूं जैसी परंपरागत फसलों के लिए भी गंभीर चैलेंज है। इसका समाधान कम लागत, कम पानी में होने वाले बाजरे जैसे मोटे अनाज ही हैं।
प्रसंस्करण की काफी संभावनाएं
बाजरे से चपातियां, ब्रेड, लड्डू, पास्ता, बिस्कुट, प्रोबायोटिक पेय पदार्थ बनाए जाते हैं। छिलका उतारने के बाद इसका प्रयोग चावल की तरह किया जा सकता है। इसके आटे को बेसन में मिलाकर इडली, डोसा, उत्पम, नूडल्स आदि बनाया जा सकता है।